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  • vijay748

जबरन की गई शादी की जंजीरों से नाबालिग बहनों को मुक्त कराया

अपडेट करने की तारीख: 28 मई

14 और 12 साल की दो बहनें राजस्थान राज्य में एक साधारण परिवार में पली-बढ़ी थीं| बच्चियों के पिता की असामयिक मृत्यु के बाद परिवार के आर्थिक हालात बहुत खराब हो गए थे| माँ ने एक फैक्ट्री में अथक परिश्रम किया, लेकिन अपनी बेटियों की शिक्षा का प्रबंध करना तो दूर, घर का गुजारा करना भी उसके लिए चुनौतीपूर्ण हो गया; ऐसी विषम परिस्थिति में उसने अपनी 14 वर्षीय बड़ी बेटी की शादी करने का कठिन निर्णय लिया|


बड़ी बेटी ने अनिच्छा से शादी की, लेकिन जल्द ही यह स्पष्ट हो गया कि वह अपने नए जीवन से संतुष्ट नहीं थी। उसके बाद माँ ने 12 साल की छोटी बेटी पर भी शादी के लिए दबाव डालना शुरू किया| उसने कड़ा विरोध किया| हालाँकि, उसकी दलीलों पर कोई ध्यान नहीं दिया गया और वह भी बाल वधू बन गई। दोनों बहनों को एहसास हुआ कि शादी से उन्हें राहत की बजाय दुख ज्यादा मिला। दोनों के पति शादीशुदा जीवन की ज़िम्मेदारियों के लिए तैयार नहीं थे। दोनों ही बहनों ने घरेलू हिंसा का सामना किया और छोटी सी उम्र में ही पूरे घर की ज़िम्मेदारी के बोझ तले दब गईं|


जैसे-जैसे तनाव बढ़ता गया, बहनों ने अपनी माँ के साथ रहने का फैसला किया और वापस लौट आयीं|


बड़ी बेटी का पति, उसकी अलग रहने की इच्छा को स्वीकार नहीं कर रहा था| वह अधिक आक्रामक होता चला गया और अपनी पत्नी से वापस घर आने की मांग पर अड़ा रहा। उसने उस पर और उसकी माँ पर इसके लिए लगातार दबाव डाला। उसके वापस न आने पर गुस्सैल पति ने अपना आपा खो दिया और अपने विनाशकारी चरमोत्कर्ष पर पहुंच गया, जब उसने सास की हत्या कर दी|


अनाथ, शोक-संतप्त और बेघर बहनें सदमें में चली गईं| उनके भरण-पोषण और भावनात्मक सहारे का छोटा सा आधार भी उनसे छिन चुका था|


बाल कल्याण समिति ने दोनों बहनों की सुरक्षा और भलाई के लिए एनजीओ गायत्री सेवा संस्थान से सहायता मांगी|

गायत्री सेवा संस्थान ने पीड़ित बहनों को सदमे से निकालने के लिए सबसे पहले उन्हें परामर्श सहायता देकर भावनात्मक संरक्षण प्रदान किया| अपनी भावनाओं और चिंताओं को साझा करने से वे सहज होती चली गईं| इसके बाद संगठन ने ऐसे विद्यालय में दोनों का प्रवेश कराया, जहां उन्हें छात्रावास की सुविधा मिल सके|


दोनों बहनों के बाल-विवाह को रद्द करने के लिए संगठन ने कानूनी कार्यवाही शुरू की| बाल-विवाह के अमान्य घोषित होने के बाद उन्होने इस मामले को राष्ट्रीय सुरक्षा आयोग के सामने प्रस्तुत किया, जिससे उन्हें अपने जीवन को नये सिरे से शुरू करने में सहयोग मिल सके| इस तरह परामर्श, शिक्षा और कानूनी कार्यवाही के माध्यम से दोनों बहनों की पुनर्वास यात्रा संभव हो सकी|

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